आलोचना >> भक्ति आंदोलन और उत्तर-धार्मिक संकट भक्ति आंदोलन और उत्तर-धार्मिक संकटशंभुनाथ
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भक्ति आंदोलन और उत्तर-धार्मिक संकट में शंभुनाथ ने भक्ति काव्य को भारतीय उदारवाद के एक आध्यात्मिक इंद्रधनुष के रूप में देखा है और उसे ‘असहमति के साहित्य’ के रूप में उपस्थित किया है। इसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और पूर्वी भारत के भक्त, संत और सूफी कवियों की सांस्कृतिक बहुस्वरता को उजागर करते हुए कबीर, सूरदास, मीरा, जायसी और तुलसीदास के योगदान का विस्तृत पुनर्मूल्यांकन है। भक्त कवि रामायण-महाभारत और अश्वघोष- कालिदास के बाद न सिर्फ भारतीय साहित्य को नया उत्कर्ष प्रदान करते हैं और सांस्कृतिक जागरण के अभूतपूर्व दृश्य उपस्थित करते हैं, बल्कि लोकभाषाओं को विकसित करते हुए भारतीय जातीयताओं की बुनियाद रखने का काम भी करते हैं उन्होंने संपूर्ण सृष्टि से प्रेम का अनुभव किया था और भारत को जोड़ा था। इन मुद्दों पर विचार करते हुए शंभुनाथ ने भक्ति आंदोलन को धार्मिक सुधार के साथ भारत के लोगों की साझी जिजीविषा के रूप में देखा है।
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